Sheher To Khud Veerana Pda Hai


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About The Book

कैफ़ भोपाली को मैंने तक़रीबन बीस बरस पहले किसी मुशायरे में देखा था। वालिहाना पढ़ने का अन्दा ज़, मख़्सूस तरन्नुम और दि ल को बिल्कुपबल्कुल नये तरीक़े से छूने का कलाम सुनकर हैरतज़दा रह गया। उस ज़माने तक मैंने प्रोफ़ेप्रोफ़ेसर बुज़ुर्गों से सुना था जो कलाम मुशायरे में चले वो बहुत कमतर और घटि या ज़रूर होगा अब मैं इस कूचे से भी आश्ना हूँ और उस कूचे की तारीख़ से भी और उन नाकाम शायर प्रोफ़ेप्रोफ़ेसर से भी वाक़ि फ़ीयत है। वली से लेकर कोई ग़ज़ल का शायर आज तक ये ऐतबार और वक़ार नहीं पा सका जिसको देखकर मुशायरे के तमाशाई अपनी बेतमीज़ी न भूल जायें। मुशायरा ख़ा लिस शायरी ही नहीं है इसमे स्टेज शामिल है। स्टेज अदाकारी, गुलूकारी का मुतालबा करता है और सिर ्फ़ तरन्नुम या तहत की ड्रामाइया में वक़्ती वाह! वाह! हो जाती है, मगर थोड़ी देर बाद तमाशाई या तो मोहज़्ज़ब होने लगते हैं या अपने घर की राह लेते हैं। मीर, सौदा, ग़ालिब, ज़ौक की तरह इज़्ज़त उसी शायर को मिलती है जो सच्चा और दि ल को छूनेवाला शायर होता है। ड्रामा या गुलूकारी का खेल वक़्ती है। अगर मुशायरा इस शेर से लुटता है- गुल से लिपटी हुई ति तली को गि राकर देखो आँधि यों तुमने दरख़्तों ख़्तों को गि राया होगा
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