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About The Book
Description
Author
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए उसे अपने समाज में रहकर समाज के प्रति कुछ कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है। और समाज के एक अंग की हैसियत से हर व्यक्ति अपेक्षा करता है कि अन्य लोग उसके प्रति एक संवेदनशील व्यवहारिक उदारवादी विवेक पूर्ण दृष्टिकोण रखें और यह दृष्टिकोण आपकी बुद्धि के विकास पर निर्भर करता है और बुद्धि का विकास होता है शिक्षा से हर व्यक्ति को अपने नैसर्गिक गुणों को अपने उच्चतम शिखर तक पहुंचने के लिए उचित शिक्षा का अवसर प्राप्त करना उतना ही जरूरी है जितना किसी बीज को जमीन में डाल देने के बाद दी जाने वाली खाद हवा वा पानी। ताकि वह अपने सभी गुणों को अपनी उच्चतम अवस्था तक विकसित कर सके। इस देश का दुर्भाग्य रहा है कि यहां की सामाजिक व्यस्था ने एक बड़े वर्ग को शिक्षा से महरूम रखा जिसके चलते इस देश का कीमती मानव संसाधन केवल एक प्रशिक्षित पशु के समान रहा। आजादी के कुछ सालों बाद जब उन्हें शिक्षा का अधिकार मिला तो विश्व भर में एक शिक्षित मानव संसाधन के रूप में इस देश के नागरिकों की पहचान हुई। भारत के संविधान में दिए गए शिक्षा के अधिकार को संवैधानिक अधिकारों की श्रेणी में रखकर संविधान सभा ने संविधान को उच्चतम शिखर प्रदान किया हैं आज भारत का संविधान किसी की धार्मिक ग्रंथ से भी श्रेष्ठ है। शिक्षा को उनके मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखता है। जो जन्म से हर नागरिक को शिक्षा के अधिकार की तरह संविधान में सुरक्षित है।