प्रस्तुत पुस्तकए श्शिक्षण क्षेत्रीय हास परिहासश् हास्य का गहन अध्ययन करती है और पाठकों को हास्य के मनोवैज्ञानिकए सामाजिक और शैक्षिक प्रभावों से अवगत कराती हैण् लेखक कक्षा कक्षों में व्याप्त संजीदगी से वाकिफ है और शिक्षकों तथा पाठकों को परामर्श देते हैं कि वे कर्तव्यों के प्रति तो संजीदा हों मगर अपने शिक्षण व्यवहार को मधुर और रोचक बनाएँण् इसके लिए वे शिक्षकों तथा पाठकों को संदर्भित हास्य कला का प्रयोग करने का परामर्श देते हैं पुस्तक की विशेषता यह है कि लेखक ने संदर्भित हास्य के आधार पर कुछ पाठ योजनाएं बना कर शिक्षकों के मार्गदर्शन हेतु पुस्तक में संजो दी हैण् वे बानगी मात्र हैंण् उन्हीं के आधार पर शिक्षक अपनी और पाठ योजनाएं बनाएँ
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