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About The Book
Description
Author
नई कहानी आंदोलन के समय में डॉ. शिवप्रसाद सिंह की चर्चा ‘नन्हों’ और ‘दादी माँ’ जैसी कहानियों के कारण हुई। कहानियों से उन्हें भरपूर प्रतिष्ठा मिली। इन दोनों कहानियों के साथ ही ‘धरातल’ और ‘बेहया’ ‘कर्मनाशा की हार’ ‘मुर्दासराय’ ‘आर-पार की माला’ ‘इन्हें भी इंतजार है’ ‘वृंदा महाराज’ आदि कहानियाँ भी काफी चर्चित हुईं। डॉ. शिवप्रसाद सिंहजी की कहानियाँ प्रायः ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। उन्होंने लिखा भी है— ‘‘मेरी जिंदगी में गाँव एक ऐसी हकीकत है जिसे मैं चाहकर भी काट नहीं सकता। गाँव की अछोर हरियाली में डूबे सीमांत फसलों के रंग-बिरंगे गलीचे बिछाकर किसी अनागत की प्रतीक्षा में डूबी धरती सरसों जलकुंभी और झरबेरी के जंगली फूलों से मदहोश वातावरण के बीच अपनी सामान्य जिंदगी के लिए संघर्षरत किसान मेरी कहानियों के अविभाज्य अंग हैं। शहर के जीवन ने जहाँ एक ओर मेरे आधुनिकता-बोध को निरंतर तीन और सक्रिय बनाया है वहीं गाँव के जीवन की धड़कनें जो अब भी सड़ी-गली परंपरा और कूटस्थ रूढि़यों का कचरा ढोती हुई कराह रही हैं मेरे कहानीकार के लिए सदा एक चुनौती रही हैं।’’ वरिष्ठ कथाकार डॉ. शिवप्रसाद सिंह की संवेदनशील मार्मिक तथा युग-प्रर्वतक लोकप्रिय कहानियों का पठनीय संकलन।