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About The Book
Description
Author
मैं नंगे राजा को नंगा ही कहना चाहता हूँ। उसका नंगापन आम करना चाहता हूँ। उसे चिढ़ाना चाहता हूँ कि उसे शर्म आए अपनी सच्चाई पता लगे और वह कपड़े पहन ले। नर से वानर बनने में ऽत्म होती शर्म की भूमिका बढ़े। अगर उसने अपने भद्दे तन को सोने के तारों के रेशमी लिबास से ढका है तो उस लिबास को तार-तार कर बदसूरती उघाड़ लेना चाहता हूँ। मैं सच को सच कहना चाहता हूँ। फरेब मुझसे नहीं होता। इसीलिए मैंने व्यंग्य लिखे -शोभाराम शमा