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About The Book

About the Book: “ हेल्लो एसीपी नामधारी! मिशन काला की जीत मुबारक हो।” फोन पर डीजीपी थे। “आपका शुक्रगुजार हूं।” नामधारी ने कहा। “मुझे कहते हुए बहुत खेद हो रहा है कि तुम्हारी छुट्टी रद्द की जा रही है।” डीजीपी ने असहजता से कहा। “ क्यों..? छुट्टी रद्द होने का कारण?” “ कारण एक मिशन है।!” “कौन-सा मिशन?” नामधारी कुछ उत्तेजित हुआ। “तुम्हे एक मिशन के लिए 'बलमा' शहर भेजा जा रहा है।” डीजीपी। “क्या…बलमा!, उन बागीयों के शहर में, जहां हाथ बाद में और पिस्तोल पहले तान दी जाती है। उसी बलमा मे शहर जहां आग से आग जलाई जाती है।”नामधारी ने उत्तेजना में कहा। “हां, उसी शहर में तुम्हे भेजा जा रहा है। मुझे यकीन है कि तुम उस एक बागी को खदेड़ दोगे। तुम अपनी टीम को लेकर कल ही तुम्हें बलमा के लिए निकलना होगा। मिशन का चार्ज तुम्हे सौंपा जा रहा है।” डीजीपी ने आदेशात्मक स्वर में कहा। “बलमा में ऐसी कौनसी वारदात हो गई?” नामधारी ने कहा। “एक हत्या हुई है!” “ बलमा में किसकी हत्या हुई है?” “बलमा जिले के एमएलए ‘रमननाथ बाघ' की सरेआम हत्या कर दी गई।” “रमननाथ बाघ की हत्या..।” सुनते ही नामधारी चौंक पड़ा। “हां… इसके साथ-साथ उनके बेटे और ड्राइवर की सरेआम बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी गई।” डीजीपी ने कहा। “ इस हत्याकांड को किसने अंजाम दिया है?” नामधारी ने गंभीरता से पुछा। “ खास बात यही है कि इन सभी की हत्याएं उस व्यक्ति ने की जिसे एमएलए रमननाथ जानते भी नहीं थे। उन्होंने तो उसका नाम भी नहीं सुना था।” डीजीपी ने कहा।
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