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About The Book
Description
Author
About the Book “दुमछल्ला” की अप्रत्याशित सफलता के बाद, निशान्त कुछ नया और विचारणीय लिखना चाहते थे जिसके फलस्वरूप इन्होनें परवरिश जैसा विषय चुना, जिसकी आज के समय में महत्त्वता बहुत बढ़ गई है। इनके अनुसार यह किताब इन्होनें नहीं लिखी है बल्कि इनके विद्रोही किरदारों ने लिखी है। आपके हाथों में इस किताब का होना, आपको भी इसका एक किरदार बनाता है। हर माँ-बाप अपने बच्चों के लिये सबकुछ करना चाहते हैं लेकिन आज के समय में समाज का योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण है जिसके सहयोग के बिना सपने बिखरने में पल भर नहीं लगता। निशान्त, आप सब की ही तरह, परिवार और रिश्तों को अहमियत देते हैं। About the Author शोर. अंतर्मन का कोलाहल या कहें की शून्यता, बाहर की अव्यवस्थित व्यवस्था से अलग, चिंतित मन का व्यथित लेकिन व्यवस्थित सुर है जो किसी भी इंसान को जीने की वजह भी देता है और जीने का उद्देश्य भी लेकिन आख़िर यह शोर पनपता ही क्यूँ है? कौन सही है, कौन गलत? कौन आज़ाद है, कौन क़ैद? अजीब सवालों के ऐसे बवंडर में ज़िंदगी उलझ जाती है कि हर कदम पर चौराहा आ जाता है। जब आस-पास देखते हैं तो लोग अपने लगते हैं लेकिन जब उनका हाथ पकड़ने की कोशिश करो तो ऐसा लगता है कि हाथ किसी ख्वाब से होकर गुजरा हो, एकदम खाली। उदास दिल बहुत कुछ करने की इज़ाज़त नहीं देता लेकिन वो ऐसे फैसले लेने को मजबूर कर देता है जो आप कभी लेना नहीं चाहते थे। यह कहानी कुछ ऐसे ही परिवारों की है जो साथ तो हैं लेकिन अपने बच्चों को समझने में नाकाम हो रहे हैं और कुछ बच्चे अपने माँ-बाप की परवरिश पर ही सवाल उठा रहे हैं। जिनको अपना समझकर जिम्मेदारी सौपीं वही विश्वासघात कर रहे हैं और कुछ कामयाबी के लिये कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार हैं।