Shravan Kumar

About The Book

पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध के दुष्परिणामों का कथावाचकजी ने बहुत पहले अनुमान लगा लिया था। आज इसी सभ्यता की चकाचौंध की आगोश में आकण्ठ डूबी युवा पीढ़ी एकाकी होती जा रही है। भूमण्डलीकरण की इस बाज़ारी दुनिया में बाज़ार होते रिश्ते परिवार तथा तार-तार होते मानव-मूल्य। ग्लोबल की रंगीन दुनिया में व्यस्त युवा पीढ़ी के पास मौज-मस्ती का समय तो है लेकिन परिवार के लिए नहीं। परिवार-रिश्तेदारों के बीच सम्वादहीनता की स्थिति परिवार के अनुभवों का पिटारा वृद्धजन मोबाइल ज्ञान के आगे बौने हैं। माता-पिता दादा-दादी या यूं कहें परिवार की अवधारणा ''एकल परिवार'' में बदल गई है। अत: परिवारों में वृद्धजन स्वयं को उपेक्षित बोझ अनावश्यक-दकियानूसी तथा परिवार का रक्षक नहीं चौकीदार समझने लगे हैं। जीवन का एकाकीपन उन्हें असुरक्षित अनुभव कराने के कारण ही जनपदों-महानगरों में ''वृद्धा-आश्रम'' कुटीर उद्योग की तरह पनप रहे हैं। परिवारों के अस्तित्व का संकट ही सामाजिक विखण्डन की ओर बढ़ते कदमों की आहट है। विलासिता भोग-विलास एकाकी जीवन भाग-दौड़ की महानगरीय जीवन-पद्धति तनाव और संघर्ष के कारण आज का ''श्रवण कुमार'' अपनी मंज़िल (उद्देश्य) से भटक गया है। युवा पीढ़ी के भटकाव के अन्य भी कई कारण हो सकते हैं। इस युवा पीढ़ी को आईना दिखाता कथावाचकजी का नाटक ''श्रवण कुमार'' आज भी प्रासंगिक है।
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE