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About The Book
Description
Author
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”</br></br>
कृष्णं नारायणं वन्दे कृष्णं वन्दे व्रजप्रियम्।</br></br>
कृष्णं द्वैपायनं वन्दे कृष्णं वन्दे पृथासुतम्।।</br></br>
श्रीमद्भागवत की महिमा</br></br>
मेरा विश्वास और अनुभव है कि इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य को ईश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है और उनके चरणकमलों से अचल भक्ति होती है। इससे मनुष्य को निश्चय हो जाता है कि इस संसार को रचने और पालन करनेवाली कोई सर्वव्यापक शक्ति है</br></br>
एक अनन्त त्रिकाल सच चेतन शक्ति दिखात।</br></br>
सिरजत पालत हरत जग महिमा बरनि न जात।