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About The Book
Description
Author
प्रस्तुत पुस्तक में दशगुरु परंपरा के प्रथम गुरु श्री नानक देवजी के बहुपक्षीय व्यक्तित्व का सारगर्भित अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। नानक देवजी की कर्मसाधना भक्तिसाधना और ज्ञानसाधना का फलक अत्यंत विशाल है। नानक को जानने के लिए नानक को अपने भीतर अनुभव करना होगा। उन वीरान बियावानों की मानसिक यात्रा करनी होगी जिनकी नानक देवजी ने यथार्थ में यात्रा की थी। सुदूर दक्षिण में धनुषकोटि के किनारे विशाल सागर की उत्ताल लहरों को देखते हुए उनमें श्रीलंका को जा रहे नानक देव की छवि को अपने मुँदे नेत्रों से देखना हो