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About The Book
Description
Author
रावण वध के बाद भगवान श्री राम सैन्य शिविर में बैठे हुए थे। वनवास के अभी बीस दिन शेष थे। युद्ध की थकावट सभी सैनिकों को महसूस हो रही थी पर विजय उल्लास में घाव दर्द भूले हुए सब सांध्य होते ही सुस्ताने की अवस्था में थे। अयोध्या में कैकेई माँ को विजय संदेश मिलते ही उन्होंने राष्ट्र ध्वज पर एक चिन्ह लगा दिया तभी गुरु वशिष्ठ एवं ऋषि विश्वामित्र कैकेई माता के महल में पहुँच जाते हैं और सारे कार्य विधि और अग्रिम रणनीति तय करते हैं। इधर लंका में भूकंप और सुनामी के बीच धरती को फाड़कर एक विशालकाय आकार में मानवता का उद्भव हुआ। प्रभु श्री राम ने उचित आदर-सत्कार कर मानवता से अपनी बात रखने को कहा। तभी आकाश में ब्रह्मा विष्णु महेश भी आ गए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने उनका भी अभिवादन किया। सुग्रीव जी ने सभी की बातों का संपादन किया। इसी घटनाक्रम में माँ कौसल्या भी नभ में आती हैं और युद्ध विजय का श्रेय माँ कैकेई को देती हैं साथ ही अपने पुत्र को विजय यश दिलाने के लिए कैकेई माँ का आभार और इनके रण कौशल की प्रशंशा करती हैं। अंत में भगवान श्री राम यदि हालात नहीं सुधरे तो फिर प्रलय का आह्वान कर