Shri Mad Bhagwat Geeta Ek Drishti

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अति लोकोत्तर पावन संगम दिखता गीता में भारत के । हैं भाव कृष्ण वार्ष्णय शब्द द्वैपायन कृष्ण व्यास जी के ॥ लेखनी से लिख पाया जिसको द्वैपायन कृष्ण व्यास जी ने । नाभा गोटयात अर्जन धतराष्ट सुनाया संजय ने ॥ अर्जन का स्वजन मोह भागा लेकर गाण्डीव चला रंण को। पर किंचित ज्ञान नहीं आया सुनकर धृतराष्ट्र अंध नृप को ॥ जो शूर-वीर अर्जुन होंगे वे लाभ उठाएंगे पढ़ कर ।धृतराष्ट्र लाभ विरहित होंगे संजय सौ बार सुनाए गर ॥ अर्जुन का था वह स्वजन मोह धृतराष्ट्र अंध का पुन मोह । अर्जुन ने मोह मुक्त होकर धृतराष्ट्र को दिया पुत्न छोह ॥'
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