*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹159
₹175
9% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
आत्मकथात्मक शैली में रचित एवं चार भागों में विभक्त ‘श्रीकान्त’ शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का रोचक पठनीय एवं संग्रहणीय उपन्यास है जो पुरुष प्रधान होते हुए भी नारी संवेदना का संवाहक है। इसके नायक श्रीकांत बचपन से ही धुन के धनी और मस्तमौला थे। किसी के साथ या एक ही जगह लंबे समय तक रहना उन की प्रकृति के विरुद्ध था। समाज में उन्हें कोई अपना कहने वाला था तो केवल उनकी बचपन की सहपाठिन राजलक्ष्मी जिसने नौ साल की उम्र में ही चैदह साल के किशोर श्रीकांत को करौंदों की माला पहनाकर अपना बनाना चाहा था। फिर भी क्या वह श्रीकांत को अपना बना सकी? यही इस उपन्यास का कथ्य है| About the Author शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने “बासा“ (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। शरत्चन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार की तलाश में शरत्चन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। इन्हीं दिनों उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान् पर शराबी और उच्छृंखल था। यहीं से उनके उपन्यास ‘चरित्रहीन’ का बीज पड़ा जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। इस उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म भी बनी। उनके उपन्यास ‘देवदास’ पर तो कई बार फ़िल्म बन चुकी है। श्रीकांत पथ के दावेदार बड़ी दीदी सविता बैरागी परिणीता आदि उनके अन्य चर्चित उपन्यास हैं|