बैरागी की मन की बात: - मुझे परम सौभाग्य प्राप्त हुआ कि, देवरिया से चल कर भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की पावन धरा श्रीधाम वृंदावन में अध्यात्मिक ज्योति जलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. ब्रह्मलीन ब्रह्मर्षि योगीराज देवराहा बाबा की असीम कृपा से श्रीधाम वृंदावन आकर मुझे मर्यादा पथ तथा श्रीमद् निषादराज भागवत पुराण एवं श्रीमद् किसान भागवत पुराण की रचना, निमित्त मात्र बनकर रचित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.अकारण करुणा वरुणालय परम प्रभु रामलला की असीम अनुकंपा से मुझे मर्यादा पुरुषोत्तम सेवा संस्थान श्रीधाम वृंदावन के तत्वाधान में मां भारती की पावन भूमि पर भगवान की कथाओ का आयोजन देखने, सुनने एवं करवाने जैसा दृश्य का लाभ प्राप्त होता रहा है. निषाद वंश में जन्म लेने की वजह से इस वंश के प्रति भी मेरा कुछ ऋण है. इस ऋण को चुकाने के लिए यह नश्वर शरीर अपने पूर्वजों के आशीर्वाद से निमित्त मात्र बनकर श्रीमद् निषादराज भागवत पुराण की रचना की. निषाद संस्कृति दुनिया की प्राचीनतम संस्कृति है. जब यह पंच तत्वों से बना शरीर इसी में मिलता है तो, उस समय जनाजे को कंधों पर उठाते वक्त और इस अंतिम यात्रा को गतिमान करते हुए राम नाम सत्य बोला जाता है .जिस राम का नाम लेकर इस यात्रा में राम नाम सत्य बोला जाता है. उसी राम के अनन्य मित्र निषादराज की कथा के रूप में श्रीमद् निषादराज भागवत पुराण की रचना राम और निषादराज की सच्ची, मित्रता की मिसाल साबित होगी.मुझे अपने अनुयायियों से, श्रद्धामयी ,आस्थामयी, भक्तिमयी भाव से कहना है कि, जब भी इस दुनिया से मेरा शरीर शांति चित अवस्था में पहुंच जाए.तो मुझे निषाद संस्कृति की चादर रूपी कफन ओढा कर मुझे इस दुनिया से विदा कर देना.हां एक बात मेरे मन में यह भी है कि, हम रहे या ना रहे यह निषाद संस्कृति पुष्पित पल्लवित व हर्षित बनी रहे.
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