आचार्य शुक्ल जब आलोचना को नयी दिशा देते हैं तो उनके आलोचना कर्म पर उनसे पूर्व हुई आलोचना का प्रभाव हमें नजर आता है। साहित्य में कोई भी विधा अचानक अपने शिखर पर नहीं पहुँचती।इन विधाओं के लेखन में रचनाकार लेखकों व कवियों का एक समूह सम्मिलित रहता है। इसी तरह हिन्दी आलोचना विधा का भी विकास हुआ है। हिन्दी आलोचना आचार्य शुक्ल के आगमन से पूर्व धीरे-धीरे अपनी विकास प्रक्रिया का रूप धारण करती है और अन्तर्यात्रा करते हुए शुक्ल युग तक आती है। आचार्य शुक्ल का लेखन भी बीसवीं शताब्दी के आरंभ से शुरू हो जाता है तो जाहिर सी बात है अपने से पूर्व की और अपने समय की भी आलोचना उनकी नजर से गुजरी होगी। कहना न होगा कि आचार्य शुक्ल अपने समय के पूर्व की आलोचना को अपनी आलोचनात्मक विवेक का आधार बनाकर हिन्दी आलोचना को उसके वृहत्तर अर्थों में संवर्धित करते हैं। इस प्रकार शुक्ल जी का आलोचना के वैशिष्ट्य का स्पष्ट आधार शुक्ल पूर्व आलोचना के परिदृश्य में उपस्थित है जिसका नैरन्तर्य और विकास आचार्य शुक्ल की आलोचना में देखा जा सकता है।आरम्भिक हिन्दी आलोचना का उद्देश्य रचनात्मकता के साथ-साथ सामाजिक सन्दर्भों से भी जुड़ा था और हिन्दी की जातीय चेतना का निर्माण भी करना था।जातीय चेतना के कारण ही हिन्दी में ‘आधुनिकता‘ का प्रवेश सुनिश्चित हुआ।इन प्रक्रियाओं के साथ-साथ ‘हिन्दी भाषा’ का प्रश्न भी आलोचकों के लिए चुनौती के समान था।आचार्य शुक्ल के आलोचना में आगमन से पूर्व ‘लिपि की समस्या’ ‘भाषाई स्वरूप की समस्या’ व ‘कविता की भाषा समस्या‘ समाप्त हो चुकी थी तथा आधुनिक साहित्य चिन्तन की भूमि तैयार हो चुकी थी। आचार्य शुक्ल हिन्दी की इस उर्वरा भूमि पर हिन्दी आलोचना को विकसित करके साहित्य समीक्षा को उसका वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हैं।.......
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.