SHUTURMURGON KE DESH MEIN

About The Book

सच कहूँ तो अधिकांश कविताएँ उस दौर की है जब व्यत्तिफ़ पीड़ा विश्वजनीन पीड़ा में बदल रही थी और हर मनुष्य अपने भीतर भय और आशंका की भारी बोझ लिए फिर रहा था। संपूर्ण मनुष्य जाति पर अचानक सवार इस बोझ से अभी तक मनुष्य बरी न हो पाया है। जीवन के एक भयावह दौर को समाप्त कर हम सभी यहाँ पहुँचे हैं। हमारे अनेक आत्मीय-स्वजन बंधु बांधव परिचित-अपरिचित हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गए हैं। उसकी आत्मा को चिर शांति मिले। परमात्मा की असीम अनुकंपा कि उन्होंने हमें एक नए सूरज देऽने का अवसर उपलब्ध करवाया है।
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