ग्वालियर क्षेत्र अपनी स्थापत्य कला के लिए पुरातन काल से विख्यात रहा है। यहाँ अनेक ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं जिन्हें स्थापत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। सिंधिया शासकों ने ग्वालियर क्षेत्र में भारत की स्वतंत्रता तक शासन किया एवं तत्कालीन शासक के कारण ही ग्वालियर भारत का अभिन्न अंग बन सका। सिंधिया शासकों का स्थापत्य के क्षेत्र में योगदान ग्वालियर क्षेत्र को और अधिक प्रमुखता प्रदान करता है। सिंधियाकालीन स्थापत्य को यह पुस्तक समर्पित है। सिंधिया के नाम से विख्यात मराठों का यह वंश मूलतः महाराष्ट्र का था। कालान्तर में सिंधिया प्रारम्भ में उज्जैन तथा बाद में ग्वालियर क्षेत्र में स्थापित हो गए। इस राजवंश या वंश के प्रथम चार शासकों के अधीनस्थ रहे। सर्वप्रथम महादजी ने स्वतंत्र शासक के रूप में सिंधियाओं को पहचान दिलाई। वे इस वंश के वास्तविक संस्थापक माने जाते हैं। मूलतः महाराष्ट्र की भूमि से संबंधित शिंदे मराठा क्षत्रिय थे। शिंदे या सिंधिया मूलतः महाराष्ट्र के सतारा के पास कान्हेरखेड़ा के ‘पाटिल’ थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने गागाभट्ट से अनुष्ठान करवाकर मराठों को क्षत्रिय घोषित करवाया था इसलिए हम सिंधिया शासकों को मराठा क्षत्रिय ही कहेंगे। सिंधिया शासकों द्वारा ग्वालियर को अपना गढ़ बनाकर भारत की स्वतंत्रता तक शासन किया गया। अपने शासनकाल के दौरान सिंधिया शासकों ने ग्वालियर रियासत में स्थापत्य क्षेत्र में अधिक निर्माण कार्य कराएं जो आज भी अपनी भव्यता के लिए प्रचलित है।
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