यह किताब उन बेहद मामूली औरतों के नातमाम क़िस्सों का जोड़ है जो अपने हालात या हादसों के चलते औचक ही ख़ास हो गईं। इन कहानियों में उन आम औरतों का उजास और अँधेरा उनके आकर्षण और विकर्षण उनके डर और पछतावे उनके हासिल नाहासिल सिमटे हुए हैं। लेखिका का मानना है कि इनमें उनकी स्मृति में ठहरे कुछ अपनों की परछाइयाँ हैं कुछ धुँधरित घटनाओं के अमिट चित्र हैं जिन्हें पन्नों पर उतारकर वह अपने मन-मानस पर रखे भार से मुक्त हो गई हैं।
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