यह किताब सियासत से आमने-सामने राजनीति की बिसात पर सियासी शतरंज पर चालें-चलने वालों सहित देश-प्रदेश एवं स्थानीय न्यायविदों खिलाड़ी जैसे करीब अट्ठारह अलग-अलग व्यक्तियों से लिए गए साक्षात्कारों पर आधारित हैं। इन साक्षात्कारों वार्तालापों में ऐसी बहुत सारी बातें हैं आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रासंगिक हैं। सियासत से आमने-सामने आपको पत्रकारिता के उस दौर में भी लेकर जाती है जब मीडिया और राजनीति में सम्मानजनक रिश्ते हुआ करते थे और लोग पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ समझते थे।
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