Smriti ke Galiyaron Se: Ek Khubsurat Pahal

About The Book

हमारा समाज सदियों के शोषण को सहते-सहते 'मूक' हो गया है। इन्हीं 'मूक' एवं ‘सन्नाटों’ में से कभी कोई चीख सीख जीद उभरकर सामने आता है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाती है। ऐसे ही सीखों एवं प्रयासों का संकलन है यह पुस्तक।‘समर्पण’ एक ग्रासरूट स्तर की संस्था है। फ़िलहाल विकासात्मक योजनाओं एवं नीतियों के क्रियान्वयन में अपनी ताकत लगा रही है। ऐसे ही कुछ ताकतों के बदोलत कोडरमा के माइका-माइंस क्षेत्र में कुछ चीजें बदली हैं। इस बदलाव में 'पीएचएफ' का विशेष सहयोग एवं मार्गदर्शन रहा है। ऐसे ही कुछ अभिनव प्रयोगों का प्रतिबिंब के रूप में यह पुस्तक है जिससे सीखा एवं दोहराया जा सकता है।कभी-कभी स्वयं अपने आप को समझने के लिए भी यह जरुरी है कि खुद के संघर्षों को रेखांकित किया जाये। माना यह जाता है कि यदि समय पर रेखांकित नहीं किया गया तो चीजें धीरे-धीरे सूखता - सिकुड़ता जला जाता है। इसलिए अनुभवों और अनुभव की स्मृतियों को कालजयी या दोहराव बरक़रार रखने के लिए यह जरूरी है। ताकि नई पीढ़ी को यह ज्ञात हो सके कि विशिष्ट जीवन व संस्कृति इन दिनों जो समाप्त होने के कगार पर हैं। इसे सहजर एवं परस्पर सहयोग से ही बचाया जा सकता है।सुनियोजित विकास के बजाय करते-सीखते आगे बढ़ते हुए ऐतिहासिक निष्कर्ष पर पहुंचने विकास की नई परिभाषा गढ़ने एवं अपनी प्रतिबद्धताओं का नए ढंग से व्याख्या करने का एक छोटा सा प्रयास है। आशा है इस आधे-अधूरे अनुभव एवं स्मृतियों पर आधारित यह पुस्तक हमें सीखने और जुड़ने की प्रेरणा देगी।
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