*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹312
₹350
10% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
अरुण कुमार केशरी वाराणसी के उदीयमान कवि के रूप में 1989 में आधुनिक तेवर की कविताओं के संग्रह "चीख़" के साथ सामने आए और यह आशा बंघा गये कि, धूमिल के बाद नई कविता या समकालीन कविता उन के माध्यम से काव्य संसार में बनारस को प्रतिष्ठित करेगी। इस क्रम में ठीक पांच वर्ष बाद उसी तेवर का उनका दूसरा कविता संग्रह "द्वन्द्व " नाम से सामने आया। यह संयोग ही कहा जाएगा कि इन दोनों संग्रहों के प्रकाशन के विद्वान अधिष्ठाता श्री पुरुषोत्तम मोदी थे, जिन्होंने इन पुस्तकों की सम्यक पहचान की। -डा मोहनलाल तिवारी "नैसर्गिक कविता संवेदना और परिवेश की कोख़ से जन्म लेतीं हैं "और सामर्थ्यवान कवि ही अपने युग के सच को वर्जनाओं की उपेक्षा कर नि:संकोच सार्वजनिक कर सकता है। आज इसी संदर्भ में अरुण कुमार केशरी का दशकों बाद तीसरा काव्य संग्रह "सोच" राष्ट्र ही नहीं विश्व के वर्तमान,भूत और भविष्य की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों पर मंडराते मानवीय संकट को अपनी पैनी दृष्टि से उजागर करती हुई अपनी संघर्षशील चेतना से सोचने समझने के लिए पाठकों को मजबूर कर देगी ऐसी आशा कर सकता हूं। सच तो यह है कि "सोच"कविता संग्रह में एहसास के कई रंग छिपे हुए हैं जिसमें जीवन की छटपटाहट और कुछ कर गुजरने की तीव्र लालसा है वस्तुतः सही आदमी के लिए सही दुनिया की तलाश की लड़ाई से ही भूखे पेट की लड़ाई शुरू होती है और यही है "सोच" संग्रह की कविताओं का दर्द भी। जो इन पंक्तियों से "सोच" का सार्थक उदाहरण प्रस्तुत करतीं हैं। कल सुनना मौन, अभी अपनी ज़मीन तैयार कर रहा है। बटाई में मिली फूट और बैर की फसल काटते काटते ऊब चुका हूं मेरे पास बहुत कुछ है कहने को आपके पास, समय नहीं है सुनने को।