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About The Book
Description
Author
भूमंडलीकरण की आँधी ने स्त्री-विमर्श की मशाल को प्रज्वलित तो किया परंतु देश-काल-निरपेक्षता से विस्फोटक भी साबित हुई। स्त्री-विमर्श वस्तुतः एक असमाप्य संवाद है- स्त्री का स्त्री के लिए स्त्री द्वारा जिसके रचक घटकों की भूमिका में समय स्थान व्यक्ति (स्त्री-पुरुष) प्रकृति की अंतरक्रिया से उत्पन्न घटनाएँ हैं। इस प्रकार स्त्री-विमर्श स्त्री के जीवन में संतुलन सामंजस्य एवं संगति की निरंतर खोज है- निर्द्वंद्व या निरपेक्ष सत्ता की कामना कदापि नहीं। केंद्र और परिधि के विपर्यय-मात्र से स्त्री से जुड़ी समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है क्योंकि दोनों इड़ा और पिंगला की भाँति अविभाज्य हैं जिनसे स्त्री-विमर्श निरंतर गतिमान है। - डॉ0 विभाषा मिश्र