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About The Book
Description
Author
स्त्रियाँ कहीं भी बचा लेती हैं पुरुषों को प्रख्यात कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविताओं का एक अनूठा और जरूरी संग्रह है।बिल्कुल आरम्भ से ही स्त्री जीवन जितेन्द्र की कविताओं में प्राणवस्तु की तरह विन्यस्त है। उन्होंने हिंदी कविता का आयतन विस्तृत करने वाली सोनचिरई जैसी कविता का सृजन अपने विद्यार्थी जीवन में ही कर दिया था। कई गम्भीर आलोचकों ने सोनचिरई को इक्कीसवीं सदी की युवा कविता का प्रस्थान विंदु भी माना है।कहने कि जरूरत नहीं कि यह कविता इस संग्रह का भी जीवद्रव्य है। जितेन्द्र श्रीवास्तव के इस संग्रह में स्त्री जीवन के सुख-दुख और संघर्ष को वाणी देने वाली तिरपन कविताएँ संकलित हैं।इन कविताओं की विषय विविधता देखते ही बनती है।संग्रह की शीर्षक कविता पितृसत्ता का सूक्ष्म प्रत्याख्यान करते हुए साहचर्य के नए सौंदर्य-शास्त्र की ओर संकेत करती है।इस संग्रह में कई कविताएँ बेटियों पर केंद्रित हैं जो स्त्री विमर्श के इस दौर में सर्वथा नई इबारत की तरह हैं। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जितेन्द्र इतिहास के संवेदनात्मक परिवर्तन की अचूक पहचान करने वाले कवि हैं। गहरी इतिहास-दृष्टि से लैस उनकी कविताओं में संश्लिष्ट जीवन इस प्रकार सहजता से अभिव्यक्त होता है कि पाठक चमत्कृत हुए बिना रह ही नहीं पाते। यह संग्रह तपते रेगिस्तान में सरोवर की तरह है।इसे मनुष्यता की औषधि भी कह सकते हैं।इस संग्रह की कविताएँ अपने पाठकों के चित्त के रसायन को अनिवार्य रूप से बदल कर उसे पुनर्नवा करेंगीइसमें कोई दो मत नहीं है।