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About The Book
Description
Author
उस शाम हलकी सी ठंडी हवा चली और डींगीचोप्प्य पानी में तेज रफ्तार से चल पड़ी ।“आखिर हम सामने जा रहे हैं ? कप्तान ने कहा।“गोल-गोल जा रहे हैं। श्री मगरिज ने कहा।परंतु हवा बहुत ताजगी भरी थी; हमारे जलते अंगों को ठंडक मिली और नींद में सहायक साबित हुई। आधी रात को मैं भूख के कारण जग गया।“तुम ठीक तो हो ?” मेरे पिताजी ने पूछा जो सारे वक्त जगे हुए थे।“केवल भूखा था। मैंने कहा।“और तुम क्या खाना चाहोगे ?“संतरे |“वह हँसा--खान-पान में कोई संतरे नहीं परंतु मैंने अपने हिस्से की एक चॉकलेट तुम्हारे लिए रख ली थी; और थोड़ा पानी भी है अगर तुम प्यासे हो तो। मैंने बहुत देर तक चॉकलेट अपने मुँह में रखी; कोशिश करके कि वह अधिक समय चले। उसके बाद मैंने चुस्की ले-लेकर पानी पिया।“क्या आपको भूख नहीं लगी? मैंने पूछा।भुक्खड़ों के समान! मैं तो पूरी तुर्केऊ खा सकता हूँ। जब हम बंबई जाएँगे या मद्रास या कोलंबो या जहाँ कहीं भी हम पहुँचेंगे हम शहर के सबसे अच्छे रेस्तराँ में जाएंगे और ऐसे खाएँगे जैसे जैसे ।-इसी पुस्तक सेसुप्रसिद्ध कहानीकार रस्किन बॉण्ड की बाल कहानियाँ न केवल मनोरंजक होती हैं बल्कि प्रेरणादायी भी | हर कहानी में बच्चों के लिए अनुकरणीय सीख अवश्य रहती है|