सुनो लद्दाख! एक यात्रा-वृत्तान्त है जिसमें लेखक द्वारा लद्दाख में की गई पैदल-यात्राओं अर्थात ट्रैकिंग का वर्णन है। किताब के मुख्यत: दो भाग हैं – पहला चादर ट्रैक और दूसरा जांस्कर ट्रैक। चादर ट्रैक सर्दियों में खासकर जनवरी और फरवरी में ही होता है। नीरज इस ट्रैक के द्वारा यह देखना चाहते थे कि सर्दियों में लद्दाख कैसा होता है और वहाँ लोग कैसा जीवन यापन करते हैं। जांस्कर ट्रैक में पदुम-दारचा ट्रैक का उल्लेख है और लद्दाख के भी सुदूरवर्ती इलाके जांस्कर के जीवन में झाँकने की छोटी-सी कोशिश की गई है। ये यात्राएँ केवल साक्षीभाव से की गई हैं; अर्थात वहाँ जाकर अपने आसपास को देखना; बस। जो दिखा वही लिख दिया। वहाँ के बारे में लेखक की बहुत सारी धारणाएँ थीं; कुछ खण्डित हुर्इं कुछ मजबूत हुर्इं। किताब की भाषा-शैली रोचक और सरल है। इसे पढ़ते हुए आपको महसूस होगा कि आप स्वयं ही इन यात्राओं में लेखक के सहयात्री बन गए हैं। इस सहयात्रा के दौरान जैसा मनोभाव आपका होता वैसा ही मनोभाव पुस्तक में पढ़ने को मिलेगा।
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