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Description
Author
नारी निस्संदेह प्रेम की प्रतिमूर्ति है। जहां नारी है वहां प्रेम न हो ऐसी कल्पना करना व्यर्थ है। प्रेम के रूप अनेक हैं परंतु नारी का प्रेम चाहे वात्सल्य हो समर्पणमय हो या फिर वासनामय ही क्यों न हो वह पूर्णरूपेण चरम बिंदु पर होता है। क्रांति त्रिवेदी का स्वयंवरा उपन्यास प्रेम की पराकाष्ठा दर्शाने वाला अदभुत उपन्यास है|