स्वयं प्रकाश के लेखन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे गम्भीर से गम्भीर बात कहते हुए भी सहज और सरल बने रहते हैं। उनके लेवान में से ऐसे अंश ढूंब पाना लगभग नामुमकिन होगा जहां वे बोझिल हुए हों। और इसी तरह उनके लेखन में शायद ही ऐसा कुन्छ हो जो सिर्फ मजे के लिए हो। बात चाहे साम्प्रदायिकता की हो स्त्री-पुरुष सम्बंधों की हो पीढ़ियों के द्वंद्र की हो समाज में रौर बराबरी की हो शोषण की हो जाति प्रथा की हो अपने खिलंदड़े लहजे को बरकरार रखते हुए स्वयं प्रकाश अपनी बात कहने की कला के उस्ताद साबित होते हैं। यह आकस्तिक नहीं है कि उनकी चौथा हादसा पार्टीशन बड़े बलि नैनसी क चूड़ा क्या तुगने कभी कोई सरदार भिलारी बेला जैसी कह निगां समकालीन हिंदी की सबसे ज्यादा पढ़ी और सराही गई कहानियों में शुमार है। अपने उपन्यासों में भी उन्होंने बड़े फलक पर यही किया है। चाहे वो जलते जहाज पर हो ज्योतिरथ के सारथी हो उत्तर जीवन कथा हो बीच में विनय हो या ईंधन हो अपने हर उपन्यास में स्वयं प्रकाश अपने अनुभवों और विचार को इस कुशलता से गूंधते हैं कि आप चाह कर भी इनके बीच कोई फांक नहीं तलाश कर पाते हैं। और जब वे कथा से कथेतर के इलाके में आते हैं तब तो कहना ही क्या । ऐसे विरल और दुर्लभ कथाकार पर केंद्रित इस पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य समाज द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन ही कहा जाएगा। प्रो. अरविन्दावन के अपने कुशल संपादन में यह पुस्तक आई है। देश भर के आलोचकों से स्वयं प्रकाश के लेखन के लगभग सभी पक्षों पर लिखवाना चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसे कोई दृष्टिवान और सजग आलोचक ही कर सकता था। आशा की जानी चाहिए कि इस आयोजन से स्वयं प्रकाश के साहित्य नर एक नवी बहस प्रारम्भ होगी।
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