कवि विजय गुंजन के काव्य संग्रह तारों की परछाईयाँ में संग्रहित उनकी काव्य रचनाये कविता की उपरोक्त परिभाषा एवं कसौटी पर खरी उतरी हैं ..मैंने उनकी इस संग्रह में शामिल तमाम रचनाये पढ़ी है और मुझे ये कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि विजय गुंजन देश समाज रिश्तों एवं मानव जीवन के समस्त मूल्यों के प्रति अति संवेदनशील है और वे देश समाज के दैनिक घटनाक्रमो पर अपनी पैनी नजर रखते हैं आज के प्रदूषित और दरिंदगी के समाज पर चोट करती उनकी ये पंक्तिया काबिलेगौर हैं शहर भर में दरिंदो का मेला दिखाई देता है इंसान है जो सच्चा यहाँ वही अकेला दिखाई देता है महिला सशक्तिकरण की हिमायत वे जुदा अंदाज़ में यूँ करते हैं लिखना है तो औरत के संघर्ष का इतिहास लिख बिना राम के यशगान के सीता का वनवास लिख डॉ. कुंवर बेचैन
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