मैं तो समझता हूँ कि संसार में सर्वश्रेष्ठ विभूति स्त्री है। इसे प्राप्त करने के लिए सारा पुरुष वर्ग दौड़ लगा रहा है परंतु भाग्यशाली ही इसे प्राप्त कर सकता है।'' यह सुनकर नवयुवती डॉक्टर से बोली ''मैं भी यही समझती थी परंतु कल से मेरी पूर्व धारणाएँ निराधार सिद्ध हो रही हैं। एक बात यह समझ में आई है कि पुरुष भी स्त्री की भाँति एक अद्वितीय विभूति है और संसार भर का स्त्री वर्ग पुरुष के पीछे भाग रहा है। इस भाग-दौड़ में ठोकर खा भूमि पर लोट-पोट होने लगी हूँ।''भौतिकता की अंधी दौड़ में निराशा से घिरे लोगों को भारतीय विचारधारा ने कितना चमत्कृत किया है इसका प्रभावपूर्ण चित्रण इस उपन्यास में किया गया है।
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