Tarjani Par Tika Loktantra (Poems)
shared
This Book is Out of Stock!


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
169
250
32% OFF
Paperback
Out Of Stock
All inclusive*

About The Book

एक काव्य-विधा के रूप में जिन रचनाकारों ने नवगीत की श्री वृद्धि की उनमें से सुधांशु उपाध्याय एक और महत्वपूर्ण हैं। 1982 में जब डॉ- शम्भुनाथ सिंह ने नवगीत दशकों का सम्पादन किया तो उन्होंने भी सुधांशु उपाध्याय की प्रतिभा को पहचाना और उस समय के कई अन्य सक्रिय नवगीतकारों की तुलना में उन्हें अधिक मूल्यवान समझा और नवगीत दशक-3 में स्थान दिया। वास्तव में सुधांशु के नवगीत नवगीत की परिभाषा गढ़ते हैं। उनके नवगीत को पढ़ते हुए सहज यह बोध होता है कि हम जो पढ़ रहे हैं वह गीत के अतिरित्तफ़ भी कुछ है। ‘गीत के अतिरित्तफ़ भी कुछ’ नवगीत की परिभाषा समुच्चय का एक प्रभावशाली तत्व है। केवल वर्तमान की दृश्य भंगिमाओं को गीत बनाना ही नवगीत नहीं है। यह सही है कि नवगीत वर्तमान निरपेक्ष नहीं है और चाहे भी तो हो नहीं सकता। कोई भी कला अपने को वर्तमान निरपेक्ष नहीं रऽ सकती किन्तु केवल वर्तमान विचार ही कला का दायित्व निर्धारक नहीं हैं। एक काव्य कला रूप होने के कारण नवगीत वर्तमान का होते हुए भी सिर्फ वर्तमान का नहीं है। नवगीत वर्तमान से सहमत होता है असहमत होता है और कभी-कभी उसका निषेध भी करता है।
downArrow

Details