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About The Book
Description
Author
‘तरकश’ जावेद अख़्तर की शायरी का मज्मूआ है। एक ऐसा मज्मूआ जिसमें जावेद अख़्तर की संजीदा सोच और उनकी संवेदनशीलता का मुग्धकारी अन्दाज़ मिलता है। जावेद अख़्तर की शायरी एक औद्योगिक नगर की शहरी सभ्यता में जीनेवाले एक शायर की शायरी है। बेबसी और बेचारगी भूख और बेघरी भीड़ और तन्हाई वंदगी और जुर्म नाम और गुमनामी पत्थर से फुटपाथों और शीशे की ऊँची इमारतों से लिपटी तहजीब न सिर्फ़ शायर की सोच बल्कि उसकी ज़बान और लहज़े पर भी प्रभावी होती है। जावेद की शायरी एक ऐसे इनसान की भावनाओं की शायरी है जिसने वक़्त के अनगिनत रूप अपने भरपूर रंग में देखे हैं जिसने ज़िन्दगी के सर्द-गर्म मौसमों को पूरी तरह महसूस किया है जो नंगे पैर अंगारों पर चला है जिसने ओस में भींगे फूलों को चूमा और हर कड़वे-मीठे जज्बे को चखा है जिसने नुकीले से नुकीले अहसास को छूकर देखा है और जो अपनी हर भावना और अनुभव को बयान करने की शक्ति रखता है। ‘तरकश’ की रचनाएँ इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि जावेद अख़्तर ज़िन्दगी को अपनी आँखों से देखते हैं। उनकी शायरी एक आवाज़ है किसी और अन्दाज़ की अनुगूँज नहीं।