वर्तमान में हम अपने यौवन के उन्माद में अंधे हुए जा रहे हैं विश्व को आनंद का एहसास प्रदान करने के लिए क्योंकि हम आनंद स्वरूप हैं। आनंद के मूर्तिमान प्रतीक की तरह हम संसार में विचरण करेंगे। अपने आनंद में हम हंसेंगे साथ ही दुनिया को भी दिवाना कर देंगे। हम जिस तरफ घूम पड़ेंगे निरानंद का अंधकार शर्मा कर भाग जाएगा। हमारे जीवनदायी स्पर्श के प्रभाव से रोग शोक ताप भाग खड़े होंगे। इस दुःखपूर्ण वेदना जर्जर मृर्त्यलोक को हम आनंद सागर से ओतप्रोत कर देंगे। प्रस्तुत पुस्तक तरुण के स्वप्न में ऐसे ही विचारों का समावेश है जिसे पढ़कर आप अपने जीवन को सार्थक करने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
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