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About The Book
Description
Author
साहित्यकारों के विचार‘‘पहली ही भेंट में उनके प्रति मेरे मन में जो आदर उत्पन्न हुआ था वह निरंतर बढ़ता ही गया। उनमें दार्शनिकता की गंभीरता थी परंतु वे शुष्क नहीं थे। उनमें हास्य-विनोद पर्याप्त मात्रा में था किंतु यह बड़ी बात थी कि वे औरों पर नहीं अपने ऊपर हँस लेते थे।’’-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त‘‘बाबूजी ने हिंदी के क्षेत्र में जो बहुमुखी कार्य किया वह स्वयं अपना प्रमाण है। प्रशंसा नहीं वस्तुस्थिति है कि उनके चिंतन मनन और गंभीर अध्ययन के रक्त-निर्मित गारे से हिंदी-भारती के मंदिर का बहुत सा भाग प्रस्तुत हो सका है।’’-पं. उदयशंकर भट्ट‘‘आदरणीय भाई बाबू गुलाब रायजी हिंदी के उन साधक पुत्रों में से थे जिनके जीवन और साहित्य में कोई अंतर नहीं रहा। तप उनका संबल और सत्य स्वभाव बन गया था। उन जैसे निष्ठावान सरल और जागरूक साहित्यकार बिरले ही मिलेंगे। उन्होंने अपने जीवन की सारी अग्नि परीक्षाएँ हँसते-हँसते पार की थीं। उनका साहित्य सदैव नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बना रहेगा।’’-महादेवी वर्मा‘‘गुलाब रायजी आदर्श और मर्यादावादी पद्धति के दृढ समालोचक थे। भारतीय कवि-कर्म का उन्हें भलीभाँति बोध था। विवेचना का जो दीपक वे जला गए उसमें उनके अन्य सहकर्मी बराबर तेल देते चले जा रहे हैं और उसकी लौ और प्रखर होती जा रही है। हम जो अनुभव करते हैं-जो आस्वादन करते हैं वही हमारा जीवन है।’’-पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र‘‘अपने में खोए हुए दुनिया को अधखुली आँखों से देखते हुए प्रकाशकों को साहित्यिक आलंबन साहित्यकारों को हास्यरस के आलंबन ललित-निबंधकार बड़ों के बंधु और छोटों के सखा बाबू गुलाब राय को शत प्रणाम!’’-डॉ. रामविलास शर्मा