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About The Book
Description
Author
डॉ. मीना का चूरू मंडल के पारंपरिक जलस्रोतों पर सर्वेक्षणात्मक शोध एक सराहनीय प्रयास है। इस ग्रंथ में वर्षाजल सतही जल एवं भूमिगत जल की उपलब्धता पर चर्चा की गई है। जल के प्रकारों (पालर पाताल एवं रेजानी) से संबंधित जल-स्थापत्य का निर्माण तत्कालीन टेक्नॉलॉजी का विस्तृत विवरण है जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिंदु है। इसके अलावा लेखिका ने चूरू जैसे थार मरुस्थलीय क्षेत्र में विशाल जल-प्रबंधन खड़ा करने के लिए विभिन्न भागीदारों की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की है। पर्यावरण मोहल्लों की बसावट के संग जल-संरक्षण वाणिज्य व्यापार जैसे व्यापक विषयों का जुड़ाव लेखिका के अध्ययन का प्रशंसनीय पहलू है। —प्रो. बी. एल. भादानी पूर्व चेयरमैन एवं कोऑर्डिनेटर सी. ए. एस. डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री ए. एम. यू. -अलीगढ़ प्रस्तुत शोध-ग्रंथ में जल-संरक्षण को लेकर हमारे प्रज्ञावान पुरखों की दूर-दृष्टि की झलक मिलती है। डॉ. मीना ने अथक परिश्रम से तथ्य और साक्ष्य जुटाकर तकनीकी रूप से ग्राफ प्रारूप अभिलेखीय संदर्भों के भिन्न-भिन्न उदाहरणों के माध्यम से पुस्तक रूप में सुंदर विमर्श प्रस्तुत किया है। पुस्तक में तथाकथित साक्षर समाज द्वारा निरक्षर मान ली गई हमारी लोक-मेधा की सुंदर बानगी प्रस्तुत की गई है। इस पुस्तक के साथ मीना कुमारी ने उन चीजों को भी हासिल किया है जिसकी प्रतीक्षा अकादमिक जगत काफी समय से कर रहा था। —सिराज केसर सी. ई. ओ. इंडिया वाटर पोर्टल