The Adventures of Max and Lily
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About The Book

उद्भव मिश्र को पढ़कर ऐसा लगता है कि कूडे-कचरेराख-रेत से बलात् ढक दिया गया ज्वालामुखी जमीन के नीचे धधक रहा हैजिसके लावे बाहर आने को बेचैन हैंक्योंकि ये कवितायें ऐसे समय में आयी है जब आदमी बस एक उपभोक्ता भर रह गया हो ।सोच-विचारस्नेह-प्रेमकरुणा और प्रतिरोध के लिए समय का अकाल पड़ चुका हो ।संवेदना क्या ? नागरिक और आदमी होने का बोध तक खत्म हो चुका हो।ऐसे समय का छायांकन सहजसपाट में शब्दो में यह कह देना साहस का काम है जैसे- अब दानव का / मानवीय चेहरा होगा क्रांति नहीं होगी दुनिया में / हर शोषित अंधा बहरा होगा ? इस तरह संग्रह की प्रत्येक कविता श्रृंगार से शुरु होकर प्रतिरोध के भंगिमा में पूरी होती है-जैसे मुर्गियाँ उदास नहीं होती हैचुप्पी का तूफानयह लड़की एक प्रेमपत्रशाहीन बाग में भारत माताकैसे कहें बसंत हैबकरी चप्पलें साहित्य शून्यचादरपेड़ आदि शीर्षको के बहानेये कवितायें समकालीन
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