<p>ये अक्टूबर महीने का एक सामान्य सा दिन था। जब मैं कॉलेज जहाँ मैं सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ में एक कक्षा में पढ़ा रहा था। मैंने देखा कि छात्रों में संस्था के प्राध्यापकों और प्रबंधन के रवैये के प्रति कुछ असंतोष और हताशा थी। इसलिए मैंने उनके मनोबल को बढ़ाने का निर्णय लिया और उनसे कहा कि कुछ सकारात्मक न करके मात्र आलोचना करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। कभी-कभी परिस्थिति चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक को जस का तस स्वीकार करके अन्य सभी भटकावों को दरकिनार करके जो लक्ष्य हमें पाना है उसके बारे में एक स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करके उसी अनुसार कार्य करने से वांछित लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाता है।</p>
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