हमारा पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 में नहीं हुआ था।
वास्तव में अंग्रेजों के खिलाफ़ आदिवासी विद्रोह 1857 की क्रांति से कम-अस-कम 75 साल पहले शुरू हो गए थे। ये लड़ाइयाँ पारंपरिक धनुष तीर और भालों से लड़ी गई थीं और उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के राजनीतिक आंदोलन से पहले दर्ज की गई थीं।
आज जब हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं तो यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि इतिहास की किताबों में वर्णित मुख्य स्वतंत्रता आंदोलन से अलग हमारे दूर-दराज गांवों और जंगलों में एक समानांतर स्वतंत्रता आंदोलन हो चुका था।
भारत के महान आदिवासी शूरवीर एक महत्त्वपूर्ण आंदोलन के गुमनाम नायकों को सम्मानित करने का एक विनम्र प्रयास है जिनके योगदान को बहुत हद तक मान्यता नहीं मिल पाई है। पुस्तक का आरंभ तिलका माँझी से होता है जिन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला युद्ध शुरू किया था। आंदोलन की दिशा पर नज़र रखने वाले और संविधान सभा में प्रभावी वक्ताओं में से एक जयपाल सिंह मुंडा भी इस किताब में शामिल हैं। ये बहादुर शूरवीर पूर्वोत्तर और दक्षिण समेत भारत के सभी हिस्सों से और देश में मौजूद सभी जनजातीय समुदायों से आए थे।
यह पुस्तक एक दुर्लभ संग्रह है और सभ्यता से राष्ट्र बनने के हमारे आत्म-अन्वेषण की यात्रा को दिखाती है।
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