The Naga Warriors: Battle of Gokul Vol. 1 (Hindi)
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About The Book

भविष्य की तैयारी के लिए हमारे पूर्वजों ने नागा साधुओं के समूह का निर्माण किया—जो धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध योद्धा थे जैसा कि आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने घोषणा की थी। शिव भक्तों का यह पंथ नि:स्वार्थ और निर्भीक भाव से लड़ता रहा और धर्म रक्षा के लिए डटा रहा। सदियों से वे धर्म और मंदिरों की रक्षा के लिए वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देते रहे। सन् 1757 में 111 नागा साधुओं ने अपने देवताओं की मूर्तियों से दिव्यास्त्र प्राप्त किए। महादेव में अपनी अटूट आस्था की वजह से उन्होंने गोकुल के मंदिरों की रक्षा के लिए अदम्य साहस अर्जित किया। एक निडर नागा योद्धा अजा के नेतृत्व में वे 4000 अफगानी सिपाहियों, 200 घुड़सवारों, 100 ऊँट सवारों और 20 तोपों के समक्ष अभेद्य दीवार की तरह खड़े हो गए। उस बर्बर अफगान सेना का नेतृत्व सरदार खान कर रहा था जो मंदिरों को ध्वस्त करने और भारत में नरसंहारों को अंजाम देने वाले अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली का सबसे निर्दयी सिपहसालार था। वह युद्ध अभी भी जारी है। यह नागा योद्धाओं के साहस और ज़िद का वादा है। यह उन शिव भक्तों का संघर्ष है जो मनुष्य रूप में शैतानों के विरुद्ध हो रहा है। यही गोकुल की लड़ाई है।