इस किताब में शामिल कुछ कविताओं को काव्यात्मक गद्य की संज्ञा भी दी जा सकती है लेकिन वे मूलरूपेण कविताएँ ही हैं। उन में कविता के समान ही काव्य संवेदना का पुट है और वे कविता की तरह ही हमारे संग पाठकीय यात्रा करती हैं। ‘ठीक समानांतर’ में शामिल कविताएँ जीवन के कंटीले पथ पर नंगे पैर चलते मनुष्य का आख्यान हैं। ये कविताएँ दफ़्तर की डायरी के पीछे लिखे गए नोट्स भी हैं रोज़नामचे भी हैं और कल्पना की उड़ान के बिंब भी हैं। ये महज़ कविताएँ नहीं हैं ये एक जीवन को काग़ज़ पर खींच लाने की जद्दो-जहद है और कामयाब जद्दो-जहद है।
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