लघुकथा के बारे में कहा जाता है कि यह गागर में सागर भर देती है। यह जमाना 'शॉर्टकट' का भी है। यही कारण है कि फास्ट फूड संस्कृति फिर विकसित हुई है। लघुकथा को हम साहित्य की फास्ट फूड संस्कृति का एक हिस्सा कह सकते हैं। चंद शब्दों में जीवन के विविध आयामों को मुखरित कर देने वाली विधा का नाम है लघुकथा। ‘लघुता' ही लघुकथा की पहली शर्त है। यही कारण है कि लघुकथा-संग्रह 'ट्रांसजेंडर' की तमाम लघुकथाएँ अपने कलेवर में लघुता के मानदंडों पर खरी उतरती हैं। संग्रह की तमाम लघुकथाओं में व्यंग्य भी है बोध भी है और प्रखर सम्वेदनाएँ भी। ये समस्त लघु रचनाएँ पाखण्ड से ग्रस्त मानवीय प्रवृत्ति पर संक्षिप्त शब्दों में जो कथाएँ कहती हैं उनका फलक काफी विस्तृत होता है। सुधी पाठक लेखक की विभिन्न लघुकथाओं के पाठ से गुजरते हुए महसूस करेंगे कि लेखक ने जिन सच्चाइयों को कथारूप में पिरोया है वे सब उनके आसपास सहज ही दृष्टव्य हो जाती हैं।.
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