TRASADI KA BADHASH : RAMESH BATRA (त्रासदी का बादशाह : रमेश बत्तरा)
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About The Book

कमलेश्वररमेश बत्तरा को बहुत प्यार करते थे। अपने आपको निरन्तर नष्ट कर रहे रमेश से वे नाराज़ थे पर उसके अंत समय के साथी भी रहे। कमलेश्वर को अंत तक विश्वास था कि रमेश ज़िंदगी की जंग जीतेगा। रमेश के जाने पर कमलेश्वर मायूस हो गए।1999 में रमेश बत्तरा की त्रासक मौत के बाद कमलेश्वर ने कहा था कि एक सपना रमेश के साथ चला गया। तब कमलेश्वर ने लिखा थारमेश के देहांत ने बहुत बड़े बड़े सवालों को जिंदा कर दिया। वे सवाल आज के भी हैं साथ ही आज की रचना संस्कृति में प्रतिभा के अवमूल्यन के भी और अन्तरात्मा के भी। रमेश ने हर रचनाकार को अपने समय और आत्मा की अंधेरी कोठरियों में झांकने को विवश कर दिया है। इन पर अब सोचना ही पड़ेगा और सोचना लम्बे समय तक चलेगा क्योंकि चलते-चलते भी रमेश कुछ सपनों को जिलाये रखने की दुत कोशिश में लगा हुआ था।अपनी व्यक्तिगत तकलीफों से वीतराग होकर भी वह अपने समय के सवालों से वीतराग नहीं हुआ था । सर्द होती इस व्याक्तिपरक और समाजपरक संस्कृति की समीक्षा का सवाल रमेश ने सामने रख दिया है उसके इस सवाल का उत्तर यदि हम न तलाश सके तो रमेश को याद करना मात्र दिखावा होगा। इसी के साथ हमें एक बार फिर उस रमेश बत्तरा को पहचानना और जानना होगा जिसे सर्दी नहीं लगती थी सर्द - संस्कृति में जीता हुआ यह अवधूत-योगी सामने खड़ा है और हमेशा खड़ा रहेगा। त्रासदी का बादशाह उस रमेश बत्तरा को पहचानने की कोशिश है जो वर्षों विस्मृति के अंधेरे में ओझल रहा है। उस रमेश बत्तरा को जो सर्द संस्कृति में जीया। प्रेम जनमेजय एवं तरसेम गुजराल द्वारा संपादित यह किताब ऐसे ही कुछ लोगों के प्यार का परिणाम है जो रमेश के हर रूप से न केवल प्यार करते थे जुड़ाव भी महसूस करते थे।
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