TRASADI KA BADSHAH : RAMESH BATRA

About The Book

70 के उत्तरार्ध मे हिंदी साहित्य में जिस कहानीकार ने अपने करिश्माई कौशल से हिंदी कथा साहित्य को संपन्न समृद्ध ही नहीं किया बल्कि कहन और शिल्प के परिपेक्ष में भी ऐसी नई दिशाएं निर्मित की जो उसके पहले देखने में नहीं आती। हिंदी कथा साहित्य का यह सितारा लेखक था रमेश बतरा। जितनी तेजी से रमेश बतरा ने अपनी तेजस्वी उपस्थिति से कथा पाठकों को हिंदी कथा के एक नए आस्वाद से परिचित करवाया वह अद्भुत था लेकिन यह भी दुखद सत्य है कि जितनी तेजी से इस सितारा लेखक ने अपने लेखन से हिंदी कथा साहित्य को एक नए उन्मेष से पूरा उतनी ही तेजी से उसका असामयिक अस्त भी हो गया। इस कथा -सितारे के ऐसे दयनीय अंत की कभी कल्पना नहीं थी। लघु कथा आंदोलन वह स्वर्ण काल था जिसके अग्रणी रमेश बतरा थे।आज भी रमेश बतरा की मील का पत्थर कहानी नंग मंनग कथ्य और शिल्प के धरातल पर जिस तरह से कहन का निर्वाह प्रस्तुत करती है वह अद्भुत है ।पीढ़ियों का खून फाटक गवाह गैर हाजिर कत्ल की रात आदि कथा संकलन और कथाएं निश्चय ही वर्तमान में आलोचकों से पुनर्व्याख्या की मांग करती है। प्रेम जनमेजय ने इस किताब को सम्पादित कर रमेश के लिखे को पुनर्व्याख्या के लिए प्रस्तुत किया है।रमेश को जानने के लिए निश्चित ही यह एक ज़रूरी किताब है।--चित्रा मुद्गल
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