उपन्यास जिंदगी एक जंजीर के बाद कहानी संग्रह तुझे भूल न जाऊँ<br>हम इस साल लोकप्रिय प्रवासी लेखक राकेश शंकर भारती का उपन्यास जिंदगी एक जंजीर लेकर आये। गौरतलब है कि इस उपन्यास का विषय हिंदी और भारतीय साहित्य के लिए बिलकुल नया और अनूठा है। थर्ड जेंडर (तृतीय लिंग विमर्श) और किन्नरों की जिंदगी वगैरह पर हिंदी में अब तक कई उपन्यास आ चुके हैं किंतु थर्ड जेंडर विमर्श में ही ट्रांसमेन (स्त्री से लिंग परिवर्तन कराकर पुरुष बनना) की जिंदगी पर कोई उपन्यास नहीं आया था। कोई पुख्ता काम नहीं हुआ था। शोधार्थियों और अध्यापकों की एक लंबी शिकायत थी कि काश ट्रांसमेन पर कोई किताब आये कोई उपन्यास आये तो हमारी जरूरत पूरी हो सके। जब हमारे प्रकाशन के जुझारू संपादक चंद्रा जी के पास मेल पर एक अनजान पाँडुलिपि मिली तो उपन्यास का टॉपिक पढ़कर उन्होंने थोड़ा-सा और आगे पढ़ा तो उन्हें फट से समझ आ गया कि हिंदी में यह उपन्यास बिलकुल नया है। ट्रांसमेन पर हिंदी में शायद यह पहला उपन्यास होगा। पूरा उपन्यास पढ़ने पर हमें पता चला कि एक नये विषय के साथ-साथ यह उपन्यास रोचक भी है और साथ में गंभीर भी। शोध और आम पाठकों के नजरिये से भी हमें ऐसा लगा कि हमें यह उपन्यास जरूर छापना चाहिए। जिंदगी एक जंजीर छपने के बाद शोधार्थियों और अध्यापकों के साथ-साथ आम पाठकों ने भी भारती जी के उपन्यास को हाथों हाथ लिया। अभी भी यह पुस्तक आम पाठकों के बीच हमारे प्रकाशक के विभिन्न डिस्ट्रीब्यूटिंग प्लेटफार्म के माध्यम से पहुँच रही है।<br>उपन्यास जिंदगी एक जंजीर के बाद हम अब राकेश शंकर भारती का चौथा कहानी संग्रह और डायमंड बुक्स में उनका पहला कहानी संग्रह तुझे भूल न जाऊँ प्रकाशित किया है। लेखक के पिछले कहानी संग्रह की तरह ही यह कहानी संग्रह भी कम रोचक नहीं है। मिथिला और पूर्वांचल के समाज के विभिन्न मुद्दों पर रोचक तरीके से प्रकाश डालता हुआ यह कहानी संग्रह आम पाठकों के मानकों पर खरे उतरे इसी उम्मीद के साथ ही इसे पाठकों के हवाले करता हूँ।<br>23 फरवरी को रूस औत तानाशाह पुतिन ने यूक्रेन को कमजोर समझकर पूरे देश को हड़पने के इरादे से बर्बर और अमानवीय हमला किया। वहाँ अभी तक हजारों निर्दोष लोग मारे गये हैं और अभी भी एक छोटा कमजोर देश युद्ध में टिककर मजबूत बर्बर रूस को मुँहतोड़ जवाब दे रहा है। लोगों के घर और यूक्रेन के कई शहर और गाँव पूरी तरह रूसी बमबारी में तबाह हो गये हैं। यूक्रेन में प्रवास कर रहे लेखक राकेश शंकर भारती भी इससे अछूते नहीं रहे। उन्हें भी अपने बच्चों के साथ जमीन के अंदर छुपना पड़ा रहा है और बंकर में भी समय समय गुजारना पड़ रहा है। इस समय वे मानसिक पीड़ा से गुजर रहे हैं। फिर भी उन्होंने इस कहानी संग्रह के प्रकाशन में हमारा साथ दिया है। इस हमले के बाद लेखक ने एक अजीब-सी खामोशी इख्तियार कर ली है। शायद वे रूस-यूक्रेन युद्ध पर कुछ तो जरूर लिखते होंगे। शायद वे पाठकों के सामने युद्ध और मानव के बर्बर रवैये के बारे में कटु सत्य लेकर हाजिर होंगे।
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