Tumhare Jane ke Baad


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About The Book

About the Book यह किताब एक हारे हुए आदमी की है जिसने लड़ना नहीं छोड़ा, एक पहाड़ की है जिसने अभी अभी एक नदी को विदा किया है, एक रेलगाड़ी की है जो अपने आखिरी स्टेशन पर एकदम खाली खड़ी है, प्रेम करते हुए उन लोगों की है जिन्होंने प्रेम में प्राप्ति को कभी सर्वोपरि नहीं माना और उन अनगिनत असंख्य लोगों की है जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवि हो सकते थे लेकिन उन्होंने इसलिए कलम नहीं उठाई क्योंकि उनके हाथों में दफ्तर की ढेरों फाइलें, बच्चों के खिलौने, घर का राशन या दवाइयों आदि का थैला था। इसी के साथ यह किताब उन लोगों की है जिनके मन में समय-बेसमय ये सब कविताएँ उगी थीं लेकिन किसी कारणवश वे इन्हें पाल-पोस कर बड़ा नहीं कर पाए। About the Author अभिषेक मानते हैं कि उन्हें कविताओं से बेहतर कोई नहीं जानता इसलिए उनका सबसे सटीक परिचय उनकी कविताओं के अलावा और कहीं नहीं मिल सकता। अभिषेक अपनी कविताओं को लेकर कोई दावा नहीं करते। वे अपनी कविताओं को कविता कहे जाने के भी पक्ष में नहीं रहते। वे मानते हैं कि वे जो कुछ लिखते हैं वह उनके अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति है जो शब्दों के रूप में उतर आती है।
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