जाँ निसार अख़्तर और उनकी शरीके-हयात सफ़िया अख़्तर को साथ रहने का मौक़ा बहुत कम मिला। उस ज़माने में जब औरतों के लिए घर से बाहर जाकर काम करना बहुत आम बात नहीं थी वे स्कूल में अपनी नौकरी करती रहीं और न सिर्फ़ अपनी और अपने बच्चों बल्कि मुम्बई की फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी ज़मीन तलाश रहे जाँ निसार साहब के लिए भी सम्बल जुटाती रहीं। ये ख़त उन्होंने इसी संघर्ष के दौरान लिखे लेकिन ये ख़त सिर्फ़ उनके हाल-अहवाल की सूचना-भर नहीं देते बल्कि वे एक बड़े सृजक की क़लम से उतरे शाहकार की तरह हमारे सामने आते हैं। ज़िन्दगी उन्हें कुछ और वक़्त देती तो निश्चय ही वे साहित्य की दुनिया को कुछ बड़ा देकर जातीं। इन ख़तों में उनकी मुहब्बत और हिम्मत के साथ-साथ उनकी और बेशक जाँ निसार अख़्तर की ज़िन्दगी खुलती जाती है साथ ही उनका अपना दौर भी अपने तमाम स्याह-सफ़ेद के साथ रौशन होता जाता है। ये ख़त प्यार और हौसले से भरे एक दिल की अक़्क़ाशी करते हैं। ये जादू की तरह असर करते हैं; इनका बेहद ताक़तवर और सधा हुआ ‘प्रोज़’ कहीं आपको रुकने नहीं देता और इनकी तुर्श मिठास में डूबे-डूबे बारहा आपकी आँखें भर आती हैं। उनके निधन के बाद जाँ निसार साहब ने उनके इन ख़तों को दो जिल्दों में प्रकाशित कराया—’हर्फ़े-आश्ना’ और ‘ज़ेरे-लब’। इस किताब में इन दोनों जिल्दों में संकलित ख़तों को दे दिया गया है।.
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.