लेखिका बनने का सपना मैंने कभी नहीं देखा था। ये सपना मुझे दिखाया गया और मैं शुक्रगुज़ार हूँ उनके प्रति जिन्होंने मुझे प्ररित किया और उन सब में सबसे पहला स्थान मेरी माता का है जो मेरे देखे सपनों को लेकर मुझसे ज्यादा उत्साहित रहती हैं। बस खेद इस बात का है कि वो सपने कभी सच नहीं हुए लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि वो इस खेद में कभी शामिल नहीं होतीं बल्कि कहती हैं कि “दुनिया इतनी बड़ी है और सपनों कि भी कमी नहीं है। जिन चीज़ों कि डोर अपने हाथ में न हो उन सब के बारे में सोचकर क्यूँ खुद को तकलीफ देना! जहाँ भी रहो और जो भी करो बस पूरे मन से करो और ख़ुशी से रहो।”
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