TUTIYON KA TUMULNAAD ( तूतियों का तुमुलनाद )

About The Book

“इक्कीसवीं सदी में पदार्पण के साथ देश एक संक्रमण के दौर से गुज़र रहा है। लम्बे चौड़े वादे भारी भरकम योजनाएँ सुधार के नाम पर नई व्यवस्थाएँ सुनहरे स्वप्नों का संजाल आम आदमी को कभी दिग्भ्रमित करता है तो कभी निराश। इन कथित कल्याणकारी योजनाओं की इबारत ख़ूबसूरत लफ़्ज़ों में काग़ज़ों पर मौजूद है पर उन्हें अमली जामा पहनाने के रास्ते में तमाम सांप सीढ़ियाँ हैं जिनसे मुठभेड़ करने के लिए आम आदमी अभिशप्त है । अपना हक़ पाने के लिए उसे अनेक भूलभुलैया से गुज़रना पड़ता है जहाँ हताशा और अवसाद की शिलाओं से टकराकर कभी उसकी अस्मिता लहूलुहान हो जाती है। वरिष्ठ व ख्यात कथाकार शैलेंद्र सागर का ये उपन्यास बेहद संक्षिप्त सटीक और सरल ढंग से ऐसी स्थितियों का अत्यंत मार्मिक आख्यान प्रस्तुत करता है। हाशिए का समाज और ग़रीब गुरबा के लिए बनाई योजनाएँ कभी सत्ता की तूतियां बन कर रह जाती हैं जिनका तुमुलनाद विपन्न और वंचित तबके को उसकी पीड़ा और कष्ट से निजात देने के बजाय कभी उसके मन मस्तिष्क को सुन्न कर देता है ।”
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