यह कहानी है एक बुज़ुर्ग की जिसे कुष्ठ रोग ने तोड़ दिया और परिवार की बेरुख़ी ने पूरी तरह अकेला कर दिया। घर से दूर होकर वह सड़कों पर भिखारी जैसी ज़िंदगी जीने लगा। हर दिन उसकी पीड़ा बढ़ती रही और जीवन से उम्मीद लगभग खत्म हो गई। लेकिन किस्मत ने उसे तीन युवाओं से मिलाया। उनकी नि:स्वार्थ मेहनत से उसका इलाज हुआ। वह फिर से स्वस्थ हुआ और जीने की चाह उसके भीतर लौट आई। परंतु परिवार की उपेक्षा का दर्द इतना गहरा था कि उसने कभी घर लौटने का सोचा ही नहीं। अंत में उसकी एक अनोखी इच्छा रही— जब उसकी सांसें थमें तो उसे अग्नि वही तीन हाथ दें जिन्होंने उसे जीने का नया अर्थ सिखाया था। यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं बल्कि करुणा त्याग और इंसानियत की सच्ची मिसाल है।
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