*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹183
₹249
26% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
यह उदासी मरघटी शांति की उस हिंसक साम्प्रदायिकता का सुबूत है जो किसी विचार और ज्ञान को सहन नहीं कर सकती। यह उदासी हमारी सामूहिक चेतना में व्याप्त एक मक्कार प्रगतिशीलता, मक्कार जनवाद और उसकी आदमख़ोर मनुष्यता को रेखांकित करती है। यह उदासी कला और साहित्य के उस कारोबार को नंगा करती है जो गोर्की के नाम पर गर्व करती है और उसके साधारण और निहत्थे नायकों के मुंह पर तकिया रखकर ऊपर बैठ जाती है - फिर नित्य आज़ादी की ढपली बजाती है। अपने ही लोगों द्वारा मारा जाना। अपने ही देश में शरणार्थी होना। अपनी ही सरकारों द्वारा हत्यारों को वज़ीफ़े बाँटना और संरक्षण देना। "लोकतान्त्रिक संस्थाओं", "बुद्धिजीवियों" और "पत्रकारों" द्वारा आतंकवादियों को प्रतिष्ठित और सम्मानित किया जाना। अपने ही ज्ञान गहवारों द्वारा अपनी ही संस्कृति के मूल स्रोतों को सदा के लिए नष्ट किया जाना। और, इस नरसंहार, संस्कृतिसंहार और स्मृतिसंहार को चुपचाप देखा जाना। यह सब होना। बहुत होशियारी से इस सबका बारहा उत्सव मनाया जाना। कोई ऊँगली उठाए तो पीठ फेर लेना। कोई आवाज़ उठाए तो उस आवाज़ को फ़ासिस्ट बताना। यह उदासी "भाईचारा" जैसे कामयाब और बलात्कारी विमर्श के सामने खड़ी है। इस भाईचारे के विधान में सदा "भाई" कौन है और "चारा" कौन? ये भाईचारा ख़ुदामारा है बड़े काम की शिफ़ा - ऐसे मज़ाक़ पर ज़ौक़ का जो वज़न है उस वज़न का कसैलापन है यह उदासी।