UDBHRANT GADYA SANCHAYITA

About The Book

फ्हिन्दी आलोचना का यह दुर्भाग्य रहा है कि अभी तक उद्भ्रांत की रचना पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ है। कविता पर कुछ काम हुए हैं कुछ विद्वानों ने लिऽा है पर उनके गद्य की ओर कम ध्यान गया है। समग्र रूप से यह कहा जाए कि हिन्दी आलोचना ने उद्भ्रांत के प्राप्य को उन्हें नहीं दिया है तो अतिश्योत्तिफ़ नहीं होगी। हम आशा करते हैं कि आगामी दिनों में हमारी नयी पीढ़ी उनकी रचनाओं को गंभीरता से पढ़ेगी और बिना किसी पूर्वग्रह के उनका सम्यक मूल्यांकन करेगी। वे न केवल हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि हैं बल्कि जरूरी गद्यकार भी हैं। उन्होंने अपने विस्तृत और व्यापक गद्य लेऽन के माध्यम से हिन्दी गद्य में जरूरी हस्तक्षेप किया है। भाषा भाव संवेदना और शिल्प--सभी दृष्टियों से वे हमारे समय के उल्लेऽनीय गद्यकार हैं। वे जितने बड़े कवि हैं उससे कम बड़े गद्यकार नहीं। यह सच है कि उनके कवि व्यत्तिफ़त्व ने उनके गद्यकार को ओझल कर दिया है। यही कारण है कि उनके गद्य पर सार्थक ढंग से बात नहीं हो पाई है। उनकी यह ‘गद्य संचयिता’ इस उद्देश्य से प्रकाशित की जा रही है कि नये पाठक उनकी रचनाओं को पढ़ें और जरूरी लगे तो बात करें। -डॉ- महेन्द्र प्रसाद कुशवाह
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